आपदा प्रबन्धन एवं पुलिस


आपदा प्रबन्धन के क्षेत्र में पुलिस की केन्द्रीय भूमिका है। पुलिस निरन्तर कार्य करने वाली संस्था है जिसका नेटवर्क अर्हनिश क्रियाशील रहता है। जब भी कोई आपदा घटित होती है तो इसकी सूचना प्रायः सबसे पहले पुलिस थाने को प्राप्त होती है और सूचना के सम्बन्धित को सम्प्रेषण, विभिन्न चरणों में राहत एवं बचाव कार्य में लगी विभिन्न संस्थाओं को सहयोग, घटना की विवेचना, अतिविशिष्ट लोगों की भ्रमण के दौरान सुरक्षा तथा घटना में प्रभावित व्यक्तियों की चिकित्सा एवं पुनर्वास तक पुलिस समन्वयक की मुख्य भूमिका निभाती है। इसलिए आपदा पुलिस उपमहानिरीक्षक पीएसी, प्रबन्धन में पुलिस द्वारा तैयार कार्ययोजना और उसके क्रियान्वयन के लिए किए गये अभ्यास का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। आपदा प्रबन्धन में पुलिस की भूमिका को अच्छी तरह समझने के पूर्व आपदा के प्रकार, प्रकृति तथा उसके परिणामों के बारे में जानकारी होना आवश्यक है।

आपदा के प्रकार
आपदा को मुख्यतः दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता हैः-
1. प्राकृतिक आपदा
2। मानवजनित आपदा

दोनों ही प्रकार की आपदा में बड़ी संख्या में जनहानि तथा सम्पत्ति को नुकसान पहुँचता है। जहाँ तक प्राकृतिक आपदा का प्रश्न है इसे नियंत्रित करना मुश्किल है क्योंकि प्रकृति पर मानव का कोई नियंत्रण नहीं है। अतः इस प्रकार की आपदा को ईश्वरीय देन मानकर इससे निपटने के लिए कार्ययोजना तैयार की जाती है। प्राकृतिक आपदा भूकंप, बाढ़, सूखा, तूफान, महामारी आदि के रूप में हो सकती है। इसके बारे में न तो कोई पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और न ही इसकी विकरालता की जानकारी पूर्व से की जा सकती है। अतः इस प्रकार की आपदा से निपटने के लिए देश में उपलब्ध विभिन्न संस्थाओं के सहयोग से कार्य किया जाता है।

इसके विपरीत मानवजनित आपदा प्रायः मानव भूल या यांत्रिक त्रुटि के कारण होती है जिसमें कभी तो पूर्वानुमान लगाना सम्भव हो पाता है परन्तु कई बार इसका पूर्वानुमान बिल्कुल ही नहीं लगाया जा सकता है। उदाहरणस्वरूप चेरनोविल आणविक दुर्घटना तथा भोपाल गैस त्रासदी जैसी घटनायें अप्रत्याशित थीं जिन्हें दशकों बाद भी नहीं भुलाया जा सकता है। ये पूर्णतया मानव भूल एवं लापरवाही का परिणाम थीं। मानवजनित आपदा को पर्याप्त सावधानी तथा सतर्कता के द्वारा निश्चित रूप से टाला या कम किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त आज के युग में आतंकवाद एवं आतंकी गतिविधियों के कारण पैदा की गयी आपदायें सबसे बड़ी चुनौती के रूप में उभर कर सामने आयी हैं। कुछ मानवजनित आपदाएं निम्नांकित हैं, जैसे- वायु, रेल तथा जलयान दुर्घटना, आग, विस्फोट, भवन गिरने की घटना, औद्योगिक दुर्घटना, आतंक एवं सामूहिक नरसंहार युद्ध आदि।

आपदा प्रबन्धन एवं पुलिस
आपदा प्रबन्धन के क्षेत्र में प्रारम्भिक कार्यवाही प्रायः स्थानीय प्रशासन एवं आकस्मिक सेवा प्रदाता संस्थाओं के द्वारा प्रदान की जाती है, हालांकि इसमें कई संस्थाएं शामिल हो सकती हैं। इसके लिए आकस्मिक सेवा प्रदाता संस्थाओं को निरन्तर तैयारी की अवस्था में रहने की आवश्यकता रहती है ताकि आवश्यकता पड़ने पर बिना किसी विलम्ब के आवश्यक सहायता प्रदान की जा सके। ऐसी सभी संस्थाओं को ऐसी व्यवस्था करके रखना चाहिए ताकि सूचना मिलने पर अविलम्ब उसे क्रियाशील किया जा सके।

पुलिस को इस प्रकार की घटना की जानकारी प्रायः सबसे पहले प्राप्त होती है। अतः पुलिस को सूचना मिलते ही तुरन्त मौके पर पहुँचकर घटना के विषय में विस्तृत तथ्यात्मक जानकारी प्राप्त करके घटना के सम्बन्ध में जिम्मेदार अधिकारियों एवं संस्थाओं को सूचना का संप्रेषण करना, घटनास्थल पर मौजूद साक्ष्य को संरक्षित रखना, घायलों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाना तथा क्षेत्र में फंसे लोगों को वहाँ से सुरक्षित स्थानों पर ले जाने का कार्य करना पड़ता है। यद्यपि इस कार्य में अग्निशमन सेवा, चिकित्सालय, अन्य सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाएँ सम्मिलित रहती हैं परन्तु इनके बीच समन्वय स्थापित करने की प्रारंभिक जिम्मेदारी पुलिस की ही होती है। स्थानीय प्रशासन के स्तर पर विभिन्न संस्थाओं के कार्य को सुचारु रूप से संचालित करने के लिये जिला एवं कमिश्नरी स्तर पर कार्ययोजना तैयार की जानी चाहिये जिसमें विभिन्न संस्थाओं के ढांचे एवं कार्य तथा उनके उत्तरदायित्व का स्पष्ट उल्लेख हो ताकि आवश्यकतानुसार सभी एजेन्सियां एवं संस्थायें प्रभावी कार्यवाही कर सकें। इस तरह की कार्ययोजना रहने पर जनहानि तथा सम्पत्ति के नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

उपरोक्त कार्य को सुचारु रूप से सम्पन्न करने के लिये प्रत्येक जिला पुलिस को अपने पास आपदा पुस्तिका (Disaster Manual) तैयार करके रखना चाहिये जिसमें निम्नलिखित सूचनायें हों-
1. विभिन्न प्राकृतिक एवं मानवजनित आपदा का विवरण।
2. आपदाओं के बारे में अफवाहें, जिन्हें दूर किया जाना होता है।
3. स्थानीय प्रशासन जैसे-म्यूनिसपल, पंचायत के अधिकारियों के विषय में जानकारी।
4. गांव, वार्ड, सेक्टर आदि का मानचित्र व विवरण।
5. स्थानीय प्रशासन के पदाधिकारियों का उत्तरदायित्व।
6. गैर-सरकारी संगठनों की सूची तथा उनके पदाधिकारियों के नाम।
7. आपदा प्रबंधन के लिये सरकारी धन की व्यवस्था तथा अन्य स्रोतों के विषय में जानकारी।
8. स्वैच्छिक संस्थाओं की भूमिका।
9. विभिन्न स्तरों पर प्रदान किये जाने वाले प्रशिक्षणों का विवरण।
10. समय-समय पर जागरूकता पैदा करने हेतु किये जाने वाले प्रदर्शन एवं अभ्यासों का विवरण।
11. विभिन्न संस्थाओं के बीच समन्वय।
12। अभिलेखीकरण।

आकस्मिक कार्ययोजना तैयार किया जाना
आकस्मिक कार्ययोजना में निम्न विवरण विस्तार से अंकित किये जाने चाहिये ताकि समय-समय पर स्थानान्तरण के उपरान्त पुलिस कर्मियों को आपदा प्रबंधन के लिये पर्याप्त मार्गदर्शन प्राप्त हो सकेः-
1. क्षेत्र की भौगोलिक जानकारी, (क्षेत्र की बनावट (Topography)।
2. जलवायु।
3. जनसंख्या तथा उसकी संरचना, जाति, लिंग व धर्मवार।
4. उद्योग व व्यापार।
5. प्राकृतिक एवं मानवजनित आपदा
इसके अंतर्गत क्षेत्र में घटित प्राकृतिक एवं मानवजनित आपदाओं का इतिहास विस्तार से अंकित किया जाना चाहिये।
6. नेतृत्व
1. शासन का ढांचा तथा विभिन्न स्तर के पदाधिकारियों की शक्ति एवं उनका उत्तरदायित्व।
2. कमाण्ड।
3. आवश्यक सेवा प्रदाता संस्था की सेवाओं की भूमिका।
4. आकस्मिक एवं अन्य सेवा संस्थायें।
4.1. चेन ऑफ कमाण्ड।
4.2. पता एवं टेलीफोन नम्बर।
4.3. अग्नि शमन, जलापूर्ति, चिकित्सा, यातायात, रेलवे, टेलीफोन, रेडक्रास सोसायटी, सिविल डिफेंस आदि संस्थाओं तथा गैर-सरकारी संगठनों को इस सूची में शामिल किया जाये।
7. सूचना प्राप्त करने तथा उसके संप्रेषण की व्यवस्था।
8. कण्ट्रोल रूम की स्थापना।
9. विभिन्न संस्थाओं से सम्बन्ध रखने वाले
पदाधिकारियों के नाम एवं टेलीफोन नम्बर।
10. घटनास्थल पर की जाने वाली व्यवस्था।
10.1. प्रत्येक संस्था/विभाग के उत्तरदायित्व एवं कार्य का अभिलेखीकरण की जाने वाली व्यवस्था।
10.2. मौके पर पहले उपस्थित होने वाले पुलिस अधिकारी के लिये दिशा-निर्देश।
10.3. नियंत्रण कक्ष, स्टाफ, जाँचकर्ता अधिकारी तथा पर्यवेक्षणकर्ता अधिकारियों के उत्तरदायित्व।
10.4. संबंधित विभाग को सूचना देना।
10.5. चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराना तथा प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों को सूचना देना।
10.6. जीवित बचे लोगों के लिये कैम्प की स्थापना।
10.7. घटना में मृत व्यक्तियों की पहचान हेतु अस्थाई मर्चरी की स्थापना।
10.8. क्षेत्र को खाली कराना।
10.9. यातायात ट्रैफिक की व्यवस्था।
10.10. सम्पत्ति की सुरक्षा।
10.11. शांति व्यवस्था बनाये रखना।
10.12. घटना की सूचना पर आने वाले वी.आई.पी. की सुरक्षा।
10.13. घटना स्थल पर मीडिया को सही तथ्यों की जानकारी देने के लिये नोडल अफसर की नियुक्ति।
10.14. मीडिया के लिये लाईजन अफसर की नियुक्ति।
10.15. संचार व्यवस्था स्थापित करना।
11. जनसाधारण को दी जाने वाली सूचना
11.1. लाउड-स्पीकर की व्यवस्था।
11.2. सही एवं स्पष्ट सूचना का प्रसारण।
11.3. रेडियो एवं टेलीविजन पर प्रसारण हेतु सही तथ्यों का संप्रेषण।
12. बचाव कार्य।
13. मलवा हटाने का कार्य।
14. शिक्षा का प्रशिक्षण।
14.1. स्वयंसेवकों तथा स्वैच्छिक संगठनों एवं सरकारी कर्मचारियों को आवश्यतानुसार प्रशिक्षण की व्यवस्था।
14.2. शैक्षिक संगठन-आपदा निवारण में स्वैच्छिक संगठनों की तैयारी, अनुभव एवं योग्यता का लाभ लेना।
15. आकस्मिक कार्ययोजना का पूर्वाभ्यास एवं प्रदर्शन- समय-समय पर विभिन्न एजेन्सियों एवं मीडिया को साथ लेकर इस प्रकार के अभ्यास एवं प्रदर्शनी आयोजित करनी चाहिये ताकि कार्ययोजना के बारे में शामिल लोगों, कर्मचारियों एवं संस्थाओं के साथ-साथ आमजन में भी जागरूकता आ सके।
16। कार्ययोजना का मूल्यांकन- समय-समय पर आकस्मिक कार्ययोजना का मूल्यांकन किया जाना चाहिये तथा उसमें अंकित सूचनाओं को अद्यावधिक किया जाना चाहिये।

पुलिस की भूमिका एवं कार्यक्षेत्र
1. भीड़ नियंत्रण-विभिन्न प्रकार की आपदाओं के विगत अनुभव से पाया गया है कि किसी घटना के होने पर जिज्ञासावश बड़ी संख्या में लोग घटनास्थल की ओर पहुँचना शुरू कर देते हैं जिससे राहत कार्य में बाधा आती है, साथ ही महत्त्वपूर्ण साक्ष्यों के नष्ट होने का भी खतरा रहता है। अतः ऐसी स्थिति में उस क्षेत्र में भीड़ नियंत्रण हेतु पुलिस व्यवस्था की जानी चाहिये।
2. यातायात व्यवस्था-घटना में घायल व्यक्तियों को अस्पताल तक ले जाने तथा ले आने एवं विभिन्न सेवा प्रदाता एजेन्सियों की पहुँच घटनास्थल पर हो सके, इसके लिये आवश्यक है कि सुचारु यातायात व्यवस्था की जाये। घटनास्थल से चिकित्सालय तथा अन्य सेवा प्रदाता संस्थान, जैसे- अग्शिमन सेवादल, रेलवे स्टेशन, बस अड्डों के बीच समानान्तर यातायात व्यवस्था बनायी जानी चाहिये ताकि ट्रैफिक के कारण कोई रुकावट पैदा न हो सके। ट्रैफिक व्यवस्था के बारे में लाउडस्पीकर, रेडियो एवं टी.वी. आदि के द्वारा प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिये।
3. क्षेत्र की तलाशी एवं उसे खाली कराया जाना-प्रायः घटनास्थल पर पुलिस ही सबसे पहले पहुँचती है। अतः उस समय घायल व्यक्तियों को तत्काल अस्पताल पहुँचाया जाना चाहिये तथा क्षेत्र को खाली कराये जाने की व्यवस्था की जानी चाहिये ताकि अन्य आवश्यक सेवा प्रदाताओं को परेशानी न हो। हानिकारक पदार्थ, विस्फोटक, ज्वलनशील वस्तु, जिससे दुर्घटना की संभावना हो, उसे पर्याप्त सावधानी के साथ हटाया जाना चाहिये। क्षेत्र को खाली कराये जाने अथवा आवश्यकतानुसार यदि घर के अंदर लोगों को रहने की अनुमति दी जाती है तो इस तरह की घोषणा पुलिस के द्वारा ही स्थिति के आवश्यक मूल्यांकन के उपरांत लाउडस्पीकर से करनी चाहिये।
4. सम्पत्ति की सुरक्षा-घटना के बाद प्रायः आपराधिक तत्व चोरी, लूट-पाट आदि की घटनाओं में लिप्त हो जाते हैं। अतः पुलिस को चाहिये कि लोगों की सम्पत्ति की सुरक्षा के लिये तत्काल आवश्यक प्रबन्ध करे तथा आवश्यकतानुसार पुलिस कर्मचारियों की नामवार ड्यूटी लगायी जाये ताकि आम जनता की सम्पत्ति की सुरक्षा हो सके।
5. घटना की आपराधिक विवेचना-यदि आपदा के पीछे कोई आपराधिक कारण परिलक्षित हो तो पुलिस को इस विषय में तत्काल प्रथम सूचना अंकित कर विवेचना शुरू करनी चाहिये। इसके लिये खोजी कुत्ते, बम डिस्पोजल स्क्वाड तथा फोरेंसिक विशेषज्ञों को घटनास्थल पर आने की सूचना तत्काल दी जानी चाहिये। घटना की गंभीरता एवं महत्ता को देखते हुए विवेचना के लिये पुलिस
अधिकारियों की विभिन्न टीमें तत्काल गठित की जानी चाहिये। इस दौरान उपलब्ध लोगों के साक्ष्य, उन व्यक्तियों की वीडियो रिकार्डिंग, घटनास्थल पर उपलब्ध भौतिक साक्ष्य आदि को एकत्रित कर लेना चाहिये। यदि गिरफ्तारी की आवश्यकता हो तो आवश्यकतानुसार गिरफ्तारी की जानी चाहिये तथा नियमानुसार अन्य वैधानिक कार्यवाही सुनिश्चित की जानी चाहिये।
6. नियंत्रण कक्ष की स्थापना-घटना के तत्काल बाद सूचनाओं के आदान-प्रदान, प्रेस एवं मीडिया को तथ्यों की सही जानकारी देने तथा अफवाहों को शांत करने के उद्देश्य से एक वृहद नियंत्रण कक्ष की स्थापना की जानी चाहिये। इसमें आवश्यकतानुसार आम आदमी, मीडिया तथा बचाव कार्य में लगी विभिन्न एजेन्सियों के बीच समन्वय स्थापित करने के लिये अलग-अलग उप नियंत्रण काउण्टर्स लगाये जाने चाहिये। इन काउण्टर्स पर जिम्मेदार एवं सहनशील पुलिसकर्मी तैनात किये जाने चाहिये जो विभिन्न भाषाओं की जानकारी रखते हों, संवेदनशील हों तथा अपने कार्य को सुचारु रूप से सम्पन्न करने के लिये पूर्व में परखे जा चुके हों। इनके पास घटना की अद्यतन जानकारी तथा घायल/मृतकों के विषय में विस्तृत विवरण निरंतर उपलब्ध कराया जाना चाहिये ताकि सही सूचना का आदान-प्रदान हो सके। इन नियंत्रण उपकेन्द्रों के लिये निर्धारित टेलीफोन नम्बरों को रेडियो, टी.वी. एवं अन्य संचार के माध्यमों से जन-साधारण को उपलब्ध कराया जाना चाहिये तथा पर्याप्त संख्या में टेलीफोन पर सूचना उपलब्ध कराने हेतु पुलिसकर्मी तैनात किये जाने चाहिये। नियंत्रण कक्ष में अभिलेखीकरण पर विशेष बल दिया जाना चाहिये और यदि संभव हो तो वहाँ प्राप्त होने वाली एवं दी जाने वाली सूचना को रिकार्ड किया जाना चाहिये। इन घटनाओं के बाद होने वाली विभिन्न प्रकार की न्यायिक एवं अन्य जाँचों में इस तरह के अभिलेखों के उपलब्ध होने पर काफी सुविधा होती है।
7. वी.वी.आई.पी./वी.आई.पी. भ्रमण-आमतौर पर बड़ी घटनाओं के तत्काल बाद राजनैतिक कारणों से विभिन्न विशिष्ट महानुभावों तथा अन्य राजनैतिक व्यक्तियों का तुरन्त आगमन शुरू हो जाता है, ऐसी स्थिति में न सिर्फ उनकी सुरक्षा बल्कि शांति-व्यवस्था की गंभीर समस्या भी उत्पन्न हो जाती है। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि इन महानुभावों की सुरक्षा के लिये अलग से पुलिस अधिकारी एवं कर्मचारियों की ड्यूटी लगायी जाये। राहत एवं बचाव कार्य में लगे हुए पुलिस कर्मियों को इस कार्य से अलग रखा जाना चाहिये क्योंकि यदि उन्हें महानुभावों की सुरक्षा तथा राहत कार्य की दोहरी जिम्मेदारी दी जायेगी तो वे किसी भी कार्य को जिम्मेदारी के साथ निभा नहीं पायेंगे। प्रयास यह किया जाना चाहिये कि इस तरह के भ्रमण से राहत एवं बचाव कार्य में बाधा न उत्पन्न होने पाये। इस सम्बन्ध में पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को महानुभावों से व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क करके उन्हें यथासम्भव जनहित में भ्रमण स्थगित करने हेतु अनुरोध भी करना चाहिये। यदि पर्याप्त पुलिस उनकी सुरक्षा हेतु उपलब्ध नहीं है तो ऐसे महानुभावांें को भ्रमण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
8. मृतकों एवं घायलों की शिनाख्त-मृतकों एवं घायलों की शिनाख्त हेतु एक अलग पुलिस टीम बनायी जानी चाहिये जो उनकी फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी तथा उनसे सम्बन्घित सूचनाओं को तरतीबवार संकलित कर उनके चिकित्सा के स्थान, पोस्टमार्टम एवं अन्तिम संस्कार आदि का पूरा रिकार्ड रखे। मृतकों की शिनाख्त करने वाले व्यक्तियों का पूरा विवरण, शव को प्राप्त करने वाले व्यक्तियों का फोटोग्राफ तथा उनका विवरण अच्छी तरह तैयार करना चाहिये, क्योंकि कई बार इस तरह की आपदाओं के बाद घोषित होने वाली सहायता राशि को प्राप्त करने के लिये अनधिकृत व्यक्ति, मृतक को अपना रिश्तेदार बताकर धन लेने का प्रयास करते हैं तथा मृतकों के नाम, पते गलत दर्ज करा दिये जाते हैं जिससे बाद में कई कानूनी पेचीदगियाँ पैदा हो जाती हैं। अतः घायलों तथा मृतकों की शिनाख्त तथा घटनास्थल से अस्पताल, राहत केन्द्र, मर्चरी तथा उनके अंतिम संस्कार स्थल तक स्पष्ट छायांकन तथा अभिलेखीकरण किया जाना चाहिये।
9. स्वागत केन्द्र-आमतौर पर ऐसा देखा गया है कि बड़ी दुर्घटनाएं या बम विस्फोट आदि के उपरांत बड़ी संख्या में दूर-दराज क्षेत्रों में घायल तथा मृतकों के रिश्तेदार एवं बड़ी संख्या में लोग अपने परिजनों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिये एकत्रित होते हैं जिनको सही जानकारी देने तथा इनके ठहरने के लिये स्वागत केन्द्रों की स्थापना की जानी चाहिये, जैसे-इनके बैठने, खाने-पीने आदि की व्यवस्था करायी जानी चाहिये। इनको वांछित सूचना नियंत्रण कक्ष के माध्यम से उपलब्ध करायी जानी चाहिये। स्वैच्छिक संगठनों के स्वयं सेवकों को इनके सहायतार्थ लगाया जाना चाहिये जो किसी पुलिस अधिकारी के मार्गदर्शन में कार्य करें।
10. विदेशियों के बारे में सूचना-यदि किसी विदेशी नागरिक की घटनास्थल में घायल या मृत्यु होती है तो पुलिस को चाहिये कि उसके सम्बन्ध में विस्तृत सूचना वियना कन्वेंशन में दिये गये प्राविधानों के अनुसार सम्बन्धित देश के दूतावास को यथाशीघ्र उपलब्ध करा दी जाये।

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